मतला क्या है|गज़ल में मतला क्या होता है|मतला कैसे लिखें-
आपने हमारा गज़ल वाला लेख पढ़ा ही होगा अगर आपने अभी तक उसे नहीं पढ़ा है तो आप गज़ल क्या है और गज़ल कैसे लिखें लेख को जरूर पढ़ें।। आज हम आपके लिए गज़ल के मतले के बारें में जानकारी लेकर आए हैं जिसे हर गज़लकार के लिए जानना जरूरी है।
दोस्तों हमने बता ही दिया था कि मतला क्या होता है लेकिन हम एक बार और समझा देते हैं कि गज़ल का जो सबसे पहले शे़‘र लिखा जाता है यानि जो गज़ल के सबसे पहले के दो मिसरे होते हैं, जिनकी दोनों पंक्तियों में काफ़िया रदीफ़ होता है वही मतला कहलाता है।
किसी भी गज़ल में मतला नहीं होने पर वो गज़ल केवल एक सामान्य रचना ही होती है। गज़ल का सौंदर्य मतले पर निर्भर करता है। जैसे हमारी एक गज़ल का मतला इस प्रकार है-
ज़मीं पर हो गई नफ़रत ज़मीं पर कम मुहब्बत है,
नकाबों से ही दिखती कातिलों में भी शराफ़त है...
हमारे इस मतले के दोनों मिसरों यानि पंक्तियों पर ध्यान दीजिए दोनों पंक्तियों में काफ़िया और रदीफ़ मुहब्बत है और शराफ़त है का प्रयोग किया गया है। सही मायने में यही एक मतला होता है।
आप तो जानते हैं कि मतले के बाद जो भी हम गज़ल के शे‘र लिखते हैं उनमें हम पहले मिसरे में काफ़िया रदीफ़ नहीं लेते हैं और उसकी दूसरी पंक्ति में लेते हैं। जैसे-
हजारों बेगुनाहों को नहीं इंसाफ मिल पाया,
नया ना साल मन पाए कयामत ही कयामत है...
आप देख सकते हैं गज़ल के पहले शे‘र में काफ़िया रदीफ़ मुहब्बत है और शराफ़त है था और अब अगले शे‘र की पहली पंक्ति में ना होकर दूसरी पंक्ति में कयामत है काफ़िया रदीफ़ प्रयोग किया गया है। इसके बावजूद अगर हम गज़ल का दूसरा शे‘र ये ना लिख करके वापस एक और मतला लिख देते हैं। जैसे-
सुनो कुछ खास रब से आज हमारी ये शिकायत है,
नया ना साल मन पाए कयामत ही कयामत है...
तो इसे हम हुस्न ए मतला कहते हैं। इसके अलावा आप और आगे मतला लिखते हैं तो उन्हें हम मतला ए सानी कहते हैं।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको गज़ल में मतला के बारें में एक अच्छी जानकारी मिल गई होगी। अगर आपको हमारे ये पोस्ट पसंद आए तो हमारी पोस्ट को नियमित रूप से पढ़ते रहें। तो मिलते हैं फिर से एक ऐसी ही पोस्ट के साथ तब तक के लिए लिखते रहिए।
-लेखक योगेन्द्र जीनगर ‘‘यश‘‘
आपने हमारा गज़ल वाला लेख पढ़ा ही होगा अगर आपने अभी तक उसे नहीं पढ़ा है तो आप गज़ल क्या है और गज़ल कैसे लिखें लेख को जरूर पढ़ें।। आज हम आपके लिए गज़ल के मतले के बारें में जानकारी लेकर आए हैं जिसे हर गज़लकार के लिए जानना जरूरी है।
दोस्तों हमने बता ही दिया था कि मतला क्या होता है लेकिन हम एक बार और समझा देते हैं कि गज़ल का जो सबसे पहले शे़‘र लिखा जाता है यानि जो गज़ल के सबसे पहले के दो मिसरे होते हैं, जिनकी दोनों पंक्तियों में काफ़िया रदीफ़ होता है वही मतला कहलाता है।
किसी भी गज़ल में मतला नहीं होने पर वो गज़ल केवल एक सामान्य रचना ही होती है। गज़ल का सौंदर्य मतले पर निर्भर करता है। जैसे हमारी एक गज़ल का मतला इस प्रकार है-
ज़मीं पर हो गई नफ़रत ज़मीं पर कम मुहब्बत है,
नकाबों से ही दिखती कातिलों में भी शराफ़त है...
हमारे इस मतले के दोनों मिसरों यानि पंक्तियों पर ध्यान दीजिए दोनों पंक्तियों में काफ़िया और रदीफ़ मुहब्बत है और शराफ़त है का प्रयोग किया गया है। सही मायने में यही एक मतला होता है।
आप तो जानते हैं कि मतले के बाद जो भी हम गज़ल के शे‘र लिखते हैं उनमें हम पहले मिसरे में काफ़िया रदीफ़ नहीं लेते हैं और उसकी दूसरी पंक्ति में लेते हैं। जैसे-
हजारों बेगुनाहों को नहीं इंसाफ मिल पाया,
नया ना साल मन पाए कयामत ही कयामत है...
आप देख सकते हैं गज़ल के पहले शे‘र में काफ़िया रदीफ़ मुहब्बत है और शराफ़त है था और अब अगले शे‘र की पहली पंक्ति में ना होकर दूसरी पंक्ति में कयामत है काफ़िया रदीफ़ प्रयोग किया गया है। इसके बावजूद अगर हम गज़ल का दूसरा शे‘र ये ना लिख करके वापस एक और मतला लिख देते हैं। जैसे-
सुनो कुछ खास रब से आज हमारी ये शिकायत है,
नया ना साल मन पाए कयामत ही कयामत है...
तो इसे हम हुस्न ए मतला कहते हैं। इसके अलावा आप और आगे मतला लिखते हैं तो उन्हें हम मतला ए सानी कहते हैं।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको गज़ल में मतला के बारें में एक अच्छी जानकारी मिल गई होगी। अगर आपको हमारे ये पोस्ट पसंद आए तो हमारी पोस्ट को नियमित रूप से पढ़ते रहें। तो मिलते हैं फिर से एक ऐसी ही पोस्ट के साथ तब तक के लिए लिखते रहिए।
-लेखक योगेन्द्र जीनगर ‘‘यश‘‘
Post a Comment