शीर्षक- माँ का आँचल
आया जो धरती पे इसमें माँ तेरा ही उपकार है,
बढ़ रहा हूँ हर पल क्योंकि तेरा ही संस्कार है,
तेरे आँचल की छांव तो वृक्ष भी मांगते है,
हम तो उसका सुकून बचपन से ही जानते है।।
जब मुझे भूख लगती तब बोल नही पाता था मैं,
तूने एक के जगह दो खिला दी ये भी जोड़ नही पाता था मैं,
कभी जो मैं गिरता था तो सहला देती थी तू,
आँखों से आँसू चुराने के लिए बहला देती थी तू,।।
कम में ही जैसे भी गुजारा कर लेती थी,
खुशियों की भूख माँ आँखों में ही पढ़ लेती थी,
अपने अरमानों को भूलकर जिंदगी काट ली तुमने,
अपने हिस्से की सारी खुशियाँ बाँट दी तुमने।।
संघर्षो से लड़कर आगे बढ़ना सिखाया,
बुलंदियों के शिखर पे चढ़ना सिखाया,
जब भी मायूस हुआ तूने हँसना सिखाया,
जिंदगी के सभी पाठों को पढ़ना सिखाया।।
- गौरव अग्रहरी
अन्य कविताएं भी जरूर पढ़ें-Read more
Bdhiya
ReplyDeletePost a Comment