कन्या भ्रूणहत्या पर कविता

खुशनसीब माता-पिता जिन्होंने
बेटी को जनम दिया है
बदनसीबो ने  तो बेटी को
कोख मे ही खतम किया है ।।
बेटे की लालसा मे जो तुमने
इतना बडा़ पाप किया है
भगवान ने भी ऐसे पापीयों को
बताओ कैसे माफ किया है ?

अजी! बेटीयाँ  तो वह दवा है
एक मुस्कुराहट से जो चिंता मिटाती है
माँ पिता की भरे खुशियों से झोली
दोनों घरो मे रोशनी फैलाती है ।।

Kanya bhrun hatya poem

माँ, मुझे भी दुनियाँ देखनी है
कोख से ही अंश ने तुम्हारे आवाज दिया है
दया न आयी उस मासूम को मारते हुए
बेटे पर ही जो तुमने इतना नाज किया है ।।

अपने ही अंश, " भ्रूण की हत्या "  कर
मनहूस घडी़ में तुमने खुशियाँ मनाई है
न्योछावर की सारी खुशियाँ लाड़ले पर
बुढा़पे मे तुम्हारे लिए मनमे उसके दया नही है ।।

हत्यारे, अन्यायी, पापी हो तुम जो
एक बेटी पालने से भी परहेज किया है
लाड़ले ने ही तुम्हारे बुढा़पा सेलिब्रेट करने
आज तुम्हे वृद्धाश्रम भेज दिया है ।।

Poem kanya bhrun hatya

दे दिया होता बेटी को जनम उस वक्त
दिन ये देखने पर आज ये पछतावा किया है
बुढा़पे की लाठी बनती वही बेटी आज
बेटे ने तो दुनिया के सामने सिर्फ दिखावा किया है ।।

बेटीयाँ हमारी खुशी, हमारा मान है
बेटीयाँ हमारी जिंदगी, हमारी शान है
ऐसा समझने वाले माता-पिता ही
'चेतना' जीवन मे सबसे महान है ।।

- गायत्री शर्मा "चेतना"

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