पेश है आज वंदना जी जांगिड के द्वारा लिखा गया ये "चाय पर व्यंग्यात्मक लेख"। अगर आपको ये पोस्ट "Sarcastic Article On Tea In Hindi" पढके अच्छा लगे तो इस पटल पर जरुर सक्रिय पाठक बन कर रहें।
चाय का नाम सुनते ही 'चाय प्रेमी' चाय पीने को आतुर हो जाते है। पर कभी आपने सोचा है, ये चाय जो हम सुबह-सवेरे और शाम को पीते है, ये भी एक इज्ज़त, मान-प्रतिष्ठा का प्रतीक है। जब हम किसी के घर जाते है। तो हम सबसे पहले यही देखते है, कि अगला व्यक्ति हमारा अतिथि-सत्कार 'चाय' से कर रहा है, या केवल अपनी ऊपरी कोरी दिखावटी बातों से।
घर पहुँचकर हम भी यही कहते है,"कि एक कप चाय के लिए भी नहीं पूछा।" और जब हमारे घर कोई व्यक्ति आता है, तो हम उसे 'चाय-काॅफी के लिए पूछते है। क्योंकि हम भी चाय के अपमान का दंश झेल चुके होते है।
सच कहूँ तो 'चाय ' को हम अतिथि-सत्कार के रूप में देखते है। पर क्या कभी आपने इसे रिश्वत के रूप में देखा है? साधारण-सी बात है, नहीं! आखिर 'चाय ' के प्रेमी भी तो बहुत है। कोई कैसे अपनी प्रेमिका को रिश्वत के रूप में देख सकता है।
आपको एक छोटी-सी घटना बताती हूँ-
"घर का राशन लाना है।" पिंकी ने अपने पापा से कहा। पिंकी की बात सुनकर पिंकी के पापा अपने मन में सोचने लगे कि घर पर ना बाइक है ना कार। हर किसी के घर पर कोई ना कोई वाहन जरूर है। ठीक है। कोई बात नहीं। परिवार में से किसी को अपने साथ ले जाऊँगा। आखिर संजय के पास स्कूटी है, वो तो ले ही चलेगा मुझे।
पिंकी के पापा ने पिंकी से कहा, "लाओ लिस्ट दे दो सामान की। मैं संजय के साथ जाऊँगा। मम्मी को बता देना।"
पिंकी ने कहा,"ठीक है। "शाम को संजय साहब और पिंकी के पापा सामान लेकर आ गये।
पिंकी के पापा ने पिंकी को आवाज़ लगाई, "चाय ले के आना। "पिंकी अपने भाई-बहनों के साथ लूडो खेल रही थी। अगर खेल बीच में छोड़ जाती तो खेल का सारा मजा चला जाता। वो पापा की आवाज़ को अनसुना कर खेलती रही।
रसोई से मम्मी चाय बनाकर लायी। और दोनों को दे दी।
कुछ दिनों बाद संजय साहब फिर आ गये। उन्हें चाय बनाकर दी गयी। क्योंकि पापा ने पिंकी को आवाज़ लगाई,कि चाय बनाकर लाना। अब जब भी कुछ काम होता तो पिंकी के पापा संजय साहब के साथ कभी स्कूटी तो कभी कार में उनके साथ जाने लगे।
घर पर आना-जाना ज्यादा होने लगा। क्योंकि वो परिवार के ही थे और सच कहूँ तो 'चाय' उस वक्त अतिथि सत्कार से ज्यादा मुझे रिश्वत लग रही थी। चाय के प्रेमी हर स्थान पर मौजूद है। वो चाय पियें बिना कहीं से उठते ही नहीं है।
पापा, पिंकी को आवाज़ लगाते है, "पिंकी चाय बनाकर लाना"। पिंकी को गुस्सा आने लग गया। उसने सोचा, ये तो हर रोज होने लगा। काश! हमारे भी बाईक या कार होती। तो शायद हर बार हमें ये चाय की रिश्वत नहीं देनी पड़ती। खैर! पापा को इससे क्या लेना-देना था। ये कहानी तो यहीं समाप्त होती है।
सोचिए! पिंकी ज्यादा बड़ी नहीं है। रसोई के कामों से ज्यादा उसे अपने भाई-बहनों के साथ खेलना पसंद है। पर वो इतना तो जानती है कि संजय साहब अपनी स्कूटी में पेट्रोल हमारी चाय पीकर ही भरते है।
काश! लोग चाय को सिर्फ चाय की तरह देखते तो ये रिश्वत नहीं होती है। पर संजय साहब अपना हिसाब साफ-सुथरा रखते है। चाय पीकर ही उठते है। और पिंकी के पापा संजय साहब के एहसास तले दबे है। अपनी इज्जत को बढाने के लिए हर बार चायके लिए पिंकी को आवाज़ लगाते है।
पिंकी इतनी तो समझदार है कि वो जान गयी, चाय किसी की प्रेमिका से बढकर कोरा मान और रिश्वत है। कुछ औरतें बातों में इतनी व्यस्त हो जाती है, कि कितने कप चाय पी,ये उन्हें पता ही नहीं होता है। घर से चाय पीकर निकलने वाली औरतें किसी के घर पहुँचने तक चाय का स्वाद भूल जाती है। वो चाहे किसी किसी के पांच मिनट भी रुकती है, तो चाय पियें बिना नहीं उठती।
चाय के दीवानों की कोई कमी नहीं है। काॅफी वाले बेचारे वैसा ही महसूस करते है। जैसा आर्टस वाला लड़का किसी साइंस वाली लड़की को पहली बार देखकर महसूस करता है। नुक्कड़ में चाय की दुकानों पर बहुत प्रेम कहानियाँ अक्सर जन्म लेती है। और वहीं पर आकर खत्म भी हो जाती है। पर सच तो ये है कि चाय प्यार नहीं एक इज्ज़त और मान-प्रतिष्ठा से जुड़ी एक ऐसी रीति बन चुकी है।जिसे हम चाहकर भी तोड़ नहीं सकते।
तो प्रिय पाठकों, ये "चाय पर व्यंग्यात्मक लेख" लेख पढकर कैसा लगा ये कमेन्ट में ज़रूर बताएं। ये पोस्ट "Sarcastic Article On Tea In Hindi" वंदना जी जांगिड द्वारा भेजी गई है।
बहुत ही अच्छा लेखन किया है आपने.सच में चाय घर की सभ्यता का भाग है|
ReplyDeleteWah vandna ji apka bhi koi jwab nhi very good article Yogesh ji ko sun kar main bhi kuch likhne lga hu agar aap sabhi thoda sath de toh mja aa jayega hmara ek blogger pr website h agar dekhna chahe toh nam bta de rhe h. Shubhambloggers.blogspot.com
ReplyDeleteNamashkar ji
😄😄😄
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