इस ब्लॉग में आज "रश्मिरथी" जो "रामधारी सिंह दिनकर" का एक खण्डकाव्य है, उसके बारे में विश्लेषण करेंगे। महान कवियों की कविताएं किस तरह बनी या किस तरह उनका अस्तित्व बना? ये प्रश्न सभी रचनाकार के मन में आता है। हमारा प्रयास रचनाकार को कविताओं का विश्लेषण करके उनके बारे में जानकारी देना रहता है।
रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसे ख्यातनाम कवि जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है। हम अपनी कक्षाओं में इनकी कई कृतियों को पढ़ चुके हैं। लेकिन आज हम इनके खण्डकाव्य "रश्मिरथी" के बारे में जान रहे हैं। चाहे रश्मिरथी एक खण्डकाव्य ही क्यों न हो लेकिन इसे एक महाकाव्य की संज्ञा भी दी जाती है। हालांकि हम आगे आपको महाकाव्य और खण्डकाव्य के बीच के अंतर को भी संक्षिप्त में बता देंगे।
रश्मिरथी एक परिचय
रश्मिरथी एक खण्डकाव्य है, जिसे कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है। रश्मि का अर्थ "सूर्य की किरण" और रथी का अर्थ "रथ पर सवार होकर" है। इसका अभिप्राय "सूर्य की किरण रथ पर सवार होकर" होता है। इसी शब्द का प्रयोग दिनकर साहब ने इसलिए किया क्योंकि ये काव्य "कर्ण" पर आधारित है। कर्ण के चरित्र को दर्शाने के लिए इस शब्द का प्रयोग हुआ है।
अब आपको रश्मिरथी की भूमिका के तौर पर बता देते हैं कि आखिरकार रश्मिरथी काव्य में क्या है। ये खण्डकाव्य महाभारत की कथा के आधार पर लिखा गया है। कर्ण कुंती का ही पुत्र होता है, जिसे कुंती ने कुँआरेपन में पैदा होने के कारण नदी में बहा दिया था। जिसके बाद उसे किसी निम्न जाति वर्ग के एक व्यक्ति ने पकड़ लिया था। उसकी परवरिश उसी व्यक्ति ने की। निम्न जाति में परवरिश होने के बाद भी उसमें शौर्य और वीरता की कोई कमी नहीं थी। जब द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों की शस्त्र कौशल का प्रदर्शन करवा रहे थे। तब सभी अर्जुन का शस्त्र कौशल देखकर चकित थे। तभी वहां कर्ण आकर अर्जुन को चुनौती देता है।
इस बात पर कृपाचार्य ने उसे उसका नाम, जाति और गौत्र पूछ ली। इसके बाद कर्ण ने सूत पुत्र होना बताया। ये बात सुनकर कृपाचार्य ने उसे अर्जुन से सामना करने लायक नहीं बताया और कहा कि तुम पहले किसी राज्य को प्राप्त करो। दुर्योधन कर्ण की वीरता देखकर उसपे गर्व करते हुए उसे अंगदेश का राजा बना देते हैं। इसके बाद कर्ण कौरवों के साथ सम्मानपूर्वक ले जाया जाता है। इस तरह छंदों का उचित प्रयोग करते हुए कर्ण की कथा को यहीं से शुरू करके इस खण्डकाव्य में बताया गया है।
रश्मिरथी खण्डकाव्य विश्लेषण
ये एक खण्डकाव्य है। खण्डकाव्य का अर्थ उस काव्य से होता है जिसमें किसी पौराणिक कथा की एक घटना पर लिखा जाता है। हम इसे एक खण्ड से समझ सकते हैं। महाकाव्य ठीक इसके विपरीत होता है जिसमें एक घटना ना होकर उसमें कई पौराणिक घटनाएं होती है। महाकाव्य के उदाहरण में रामायण और महाभारत आदि है। जबकि रश्मिरथी महाभारत की एक घटना पर आधारित है, इसीलिए इसे खण्डकाव्य कहा जाता है।
इसमें 7 सर्ग लिखे गए हैं और खण्डकाव्य में 7 सर्ग या इससे कम लिखे जाते हैं। रश्मिरथी को रामधारी सिंह दिनकर ने मात्रिक छंद के आधार पर लिखा है। एक सही उतार-चढ़ाव यानी यति गति के साथ इसके हर सर्ग को रचा गया है। इसके प्रथम सर्ग में 7 भाग, द्वितीय सर्ग में 13 भाग, तृतीय सर्ग में 7 भाग, चतुर्थ सर्ग में 7 भाग, पंचम सर्ग में 7 भाग, षष्ठ सर्ग में 13 भाग और सप्तम सर्ग में 8 भाग है।
इसके प्रथम सर्ग में चार-चार पंक्तियां इस तरह मात्रिक छंद में लिखी गई है, हर चार पंक्ति की प्रारंभिक 2 पंक्तियों में 28-28 मात्राएं रखी है है, जबकि बाकी की तीसरी और चौथी पंक्ति में 27-27 मात्राएं रखी गई है। इतना ही नहीं तीसरी और चौथी पंक्ति के अंत में लघु गुरु रखा गया है
इसके द्वितीय सर्ग में हर चार पंक्तियां 30-30 के मात्रिक नियम पर आधारित है। लेकिन इस सर्ग के अंत की 6 पंक्तियां 19-19 मात्रा के आधार पर लिखी गई है। इसके तृतीय सर्ग में 6-6 पंक्तियों के जोड़े हैं। इन 6 पंक्तियों के जोड़े की हर पंक्ति 16 मात्राओं पर आधारित है। चतुर्थ सर्ग में 4-4 पंक्तियों के जोड़े हैं और हर पंक्ति 28 मात्राओं से परिपूर्ण है। पञ्चम सर्ग में भी 4-4 पंक्तियों के जोड़े हैं और इसकी हर पंक्ति में 22 मात्राएं मिलती है।
षष्ठ सर्ग में शुरुआत में एक पंक्ति में 2 चरण देखने को मिलते हैं। जिसमें हर एक पंक्ति में 32 मात्राएँ हैं। लेकिन यहां यति बनाए रखने के लिए 16,16 पर यति रखी गई है। इतना ही नहीं कहीं-कहीं अपने भावों को सही हाव-भाव से दर्शाने के लिए कई पंक्तियां 14 मात्राएं लेकर लिखी गई है। इसके अलावा 28 मात्राएँ भी कहीं-कहीं देखने को मिलती है। सप्तम सर्ग में शुरुआत कहीं स्थानों पर हर पंक्ति 19 मात्रा लेकर लिखी गई है। बीच-बीच में भावों को अभिव्यक्त करने के लिए 26 मात्राएँ भी कई पंक्तियों में देखने को मिलती है। इतना ही नहीं कई पंक्तियां 16,16 पर यति देकर 32 मात्राओं के आधार पर लिखी गई है।
इस विश्लेषण के आधार पर आप ये तो समझ गए होंगे कि रश्मिरथी को रामधारी सिंह दिनकर ने सम मात्रिक छंद के आधार पर लिखा है। साथ ही हर सर्ग में छंदों में परिवर्तन भी देखने को मिलता है। हाव भाव के आधार पर एक सही यति गति देने के लिए बहुत ही अच्छे से अपनी रचना को दिनकर जी ने उकेरा है।
ये खण्डकाव्य लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है। आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके रश्मिरथी बुक को खरीद सकते हैं। ये बुक आपको 3 फॉरमैट में मिलती है। आप चाहें तो इसे Kindle format, paperback format और hard cover में भी खरीद सकते हैं।
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आज हमने आपको "रश्मिरथी" जो कि रामधारी सिंह दिनकर का खण्डकाव्य है। उसके सातों सर्ग का विश्लेषण करके बताया है। आपको हमारा ये लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके ज़रूर बताए।
आपका ये लेख बहुत ही ज्ञानवर्धक हैं. बहुत ही गहराई में आपने जानकारी दी हैं.मै आपका बहुत बड़ा फैन हूँ. आपकी हिंदी साहित्य से जुडी जानकारिया बहुत ही लाभप्रद होती हैं.
ReplyDeleteएक निवेदन करना चाहता हूँ आपसे
मेरा एक ब्लॉग हैं जिसमे मै ऐसे ही कविताओं से जुड़े लेख लिखता हूँ जिसका लिंक ये हैं
https://veerraskvita.blogspot.com/2021/07/8.html?m=1
कृपया आप इसे विजिट करें और मेरा मार्गदर्शन करें. जय हिन्द
Thank you so much for the explanation ☺️
ReplyDeleteBahut shandar vyakhya
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