क्यूँ किलकारियाँ हो रही है क्यूँ माताएँ रो रही है,
क्यूँ प्रत्येक दिन समाज मे अनहोनी रोज हो रही है।
क्यूँ इन अपराधो को कोई रोकता क्यूँ नही
क्यूँ गलत करनेवालों को कोई टोकता क्यूँ नही,
जिनके अत्याचारों से बिगङ गए सब हालात
क्यूँ दहकती इस ज्वाला मे उन्हें कोई झोंकता क्यूँ नही।
वह निअपराध है फिर क्यूँ उन्हें सताया जा रहा है,
क्यूँ माताओं की कोख को बंजर बनाया जा रहा,
वह जगमगाती किरन है इस संसार की
फिर क्यूँ आने से पहले ही उन्हें बुझाया जा रहा है।
इनमें ही छिपा है कल का भविष्य इन्हें संसार के रंगमंच मे घुलने दो,
हमारी खुशी बसी है इनमें इनकी खुशी भी इनको मिलने दो,
जो अधिकार दिया है तुमने बेटों को पढ-लिखने का
उन बेटों की भाँति ही इनके रुपों को भी खिलने दो ।
अभी वक्त़ है इसलिए अपने जीवन को बेहतर बनाओ,
भेदभाव की इस प्रथा को न अब तुम आगे बढा़ओ,
नहीं है आज लङकियाँ किसी भी क्षेत्र मे लङकों से कम,
अपनी इस गलत सोच को अपने दिमाग से हटाओ।
- मुकेश नेगी
क्यूँ प्रत्येक दिन समाज मे अनहोनी रोज हो रही है।
क्यूँ इन अपराधो को कोई रोकता क्यूँ नही
क्यूँ गलत करनेवालों को कोई टोकता क्यूँ नही,
जिनके अत्याचारों से बिगङ गए सब हालात
क्यूँ दहकती इस ज्वाला मे उन्हें कोई झोंकता क्यूँ नही।
वह निअपराध है फिर क्यूँ उन्हें सताया जा रहा है,
क्यूँ माताओं की कोख को बंजर बनाया जा रहा,
वह जगमगाती किरन है इस संसार की
फिर क्यूँ आने से पहले ही उन्हें बुझाया जा रहा है।
इनमें ही छिपा है कल का भविष्य इन्हें संसार के रंगमंच मे घुलने दो,
हमारी खुशी बसी है इनमें इनकी खुशी भी इनको मिलने दो,
जो अधिकार दिया है तुमने बेटों को पढ-लिखने का
उन बेटों की भाँति ही इनके रुपों को भी खिलने दो ।
अभी वक्त़ है इसलिए अपने जीवन को बेहतर बनाओ,
भेदभाव की इस प्रथा को न अब तुम आगे बढा़ओ,
नहीं है आज लङकियाँ किसी भी क्षेत्र मे लङकों से कम,
अपनी इस गलत सोच को अपने दिमाग से हटाओ।
- मुकेश नेगी
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