साथ निभाना
न देखो तुम मुझे
इन निगाहोसे
मेरी धडकने जुडी
तुम्हारी सांसोसे
कब तक बैठे एक छत के नीचे
हो गयी देर बडी ........
मन तरसे रुक जाओ सुनने
जब देखू मै घडी .........(१ )
न चाह कर भी अब तो
निकले जाने हम
देखी तभी तुम्हारी
आंखे हुई जो नम.......(२ )
हम दोनो क्या सोच रहे
कुदरत ने कैसे जाना
बाहर जाने से पहलेही
बारीश का जोर से आना.......(३ )
हम दोनोके रिश्ते को
उपरवालेने भी माना
तुम भी अब जिंदगीभर
मेरा साथ निभाना .......(४ )
-डॉ संदीप पाटील ‘भालचंद्र’
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